हम सब कभी न कभी ये सोचते है कि दुनिया क्या है,कैसी है , संसार क्या है, दुनिया को कैसे समझा जाये ? मैंने भी कई बार सोचा और एक दिन कुछ किताब पढ़ते वक़्त एक छोटी सी कहानी पढ़ी वो आपको बताता हूँ शायद इस से आपके भी प्रश्नों का उत्तर मिल सके | कृपया Article को पूरा पढ़े ....

duniya kya hai, duniya ko kaise samjhe - AryanPrime



एक गुरुकुल में कुछ छात्र अपने गुरु की सेवा करते हुए बहुत सी विद्या सीख रहे थे विद्या या ये कहे गुरुकुल की Schooling पूरी होने के बाद जब वहां उन छात्रों का आखिर दिन था तब शाम के समय गुरु जी (Teacher) बोले मैंने आपको संसार में अपनी मेहनत से जीने के लिए ज़रूरी सारा ज्ञान आपको दिया है | इसका संसार में सही उपयोग करना और इसका कभी अहंकार मत करना |

तभी एक छात्र (Student ) ने पूछा गुरुदेव Duniya Kya Hain ? Duniya Ko Kaise Samjhe ? तब गुरु जी ने कहा दुनिया को समझना कठिन नहीं है इसको अलग अलग में पुस्तक  अलग अलग समझाया गया है ,
फिर गुरुदेव ने एक कहानी सुनानी शुरू की |

एक शहर में एक बहुत ही भव्य महल था उसकी सभी दीवारों में तरह तरह के शीशे लगे थे उसी दीवारों में ऐसे रत्न भी लगे थे जिसके प्रकाश में इंसान को अपने ही कई प्रतिबिम्ब दिखे | एक दिन की बाद है शहर का एक जानवर जो बहुत गुस्से में था उस महल के अंदर जा पहुंचा और देखा उसके चारो और उसी की भांति  हजारो जानवर उतनी ही गुस्से में उसको देख रहे है उनको ऐसे गुस्से में देख कर उसने उन बाकी जानवरों पर चिल्लाना शुरू किया और ये क्या उसके शोर करते ही उन सब ने उस पर चिल्लाना और आँख दिखाना भी शुरू कर दिया वह बहुत देर तक अलग अलग तरीके से उन जानवरों पर गुस्सा दिखता रहा और उसी के साथ वो जानवर उस पर गुस्सा दिखने लगते |  और आखिर में वह गुस्से और डर की वजह से वहां से निकल भागा और कभी वहा न जाने का निश्चय किया और मन ही मन कहा इससे बुरी जगह तो कही और कोई हो ही नहीं सकती |

कुछ दिनों बाद एक कुत्ता बहुत ख़ुशी में टहलता जा रहा था और वो टहलते हुए उस महल में जा पहुंचा | और महल में पहुचते ही वो क्या देखता है की हजारो की संख्या में कुत्ते खुशी से उसकी ओर देख रहे है मानो वो उसका स्वागत कर रहे हो  | उनको ऐसे स्वागत करते देखकर वो बहुत खुश हुआ उसकी खुशी सातवे असमान में थी वो ख़ुशी से नाचने लगा और जैसे ही उसने नाचना शुरू किया बाकि कुत्ते भी उसी ख़ुशी ने नाचने लगे |

वह ख़ुशी ख़ुशी उस महल से सबको धन्यवाद करता हुआ बाहर आया और कहा यहाँ सब कितने खुश है ये सबसे अच्छी जगह है इससे अच्छी और श्रेष्ठ जगह कही हो ही नहीं सकती | उसने निश्चय किया जब भी समय मिला वह यहाँ ज़रूर आएगा |

कहानी समाप्त होते ही  छात्र ने कहा .. गुरु जी शीशे जडित उस भव्य महल में तो उन सबको अपनी परछाई ही दिखी जैसे वो थे वैसे ही वहां उनकी छाया दिखी , तो उस जगह को अच्छा या बुरा कैसे कहा जा सकता है

गुरु जी ने कहा..
'दुनिया भी ऐसे भव्य महल की भांति है जिसमें जो मनुष्य जैसे भावो विचारो के साथ रहता है उसको प्राय : उसी के अनुरूप सब कुछ दिखता है | इस पर उसका दुनिया को अच्छा या बुरा कहना उसकी मुर्खता से इतर कुछ भी नहीं |
इसलिए दुनिया को अच्छा बुरा कहने की बजाय खुद को समझने का प्रयास सबसे अच्छा है |
जैसा की रामायण में ईश्वर के लिए कहा गया है
"जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी"
अत: जो व्यक्ति ईश्वर को जिस रूप में देखता है वह उसे वैसे ही दिखाई देते है उसी प्रकार संसार भी हमारे विचारो के अनुरूप ही अच्छा या बुरा है  जो इसको सुखो का भंडार मानते है उन्हें यहाँ खुशियाँ और सुख ही मिलते है

और जो लोग इसको दुखो की काल कोठरी मानते है उन्हें सब प्रकार से हर अच्छाई में दुःख और परेशानी की अतिरिक्त कुछ नहीं दीखता |

सही भी है हम जिन चीजो को जैसे देखना चाहते है वो कई हद तक वैसी ही दीखती है |

Science में Newton का Third Law of Motion (गति का तृतीय नियम ) है
"For every action, there is an equal and opposite reaction"
अर्थात सभी क्रिया की उसके ही बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है |


ये बात हमारे जीवन में भी कई पहलु से कई हद तक लागू होती है हम जैसा विचार करते है जैसे सोचते है वैसा ही अपना संसार बना लेते है उससे अलग न हम सोच पाते है और न देख पाते है | जब तक अपने नजरिये को हर पहलु से सोचना और देखना नहीं शुरू करते तब तक हम उस शीश महल में खड़े कुत्ते की भातिं अपने ही विचार की प्रतिक्रिया को सब ओर देख रहे है | 


लेख पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद् ||


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